एक मुसल्मान को ला रहे हो ये मुझे पहले बताना था....are we secular?

Thursday, July 30, 2009


फिल्म अभिनेता इमरान हाशमी ने मुम्बई की एक हाउसिंग सोसाइटी पर गंभीर आरोप लगाया है और कहा है की उन्हे उस सोसायटी में इस लिए घर नही मिल रहा है क्योकि वो एक मुस्लि है क्या इमरान के आरोपों में सच्चाई है?....ये पहली बार नही है जब फिल्म जगत की किसी हस्ती ने एसा आरोप लगाया है इससे पहले शबाना आज़मी सैफ अली खान भी एसे आरोप लगा चुके आरोप गंभीर है ...इस बात से तो सभी वाकिफ हैं की जुहू और बांद्रा में मुस्लिम कलाकारों को घर मिलने में हमेशा दिक्क्त इसलिए इस पर बहस जरुरी है ये लोग फिल्मी हस्तिया अपनी बात या अपने साथ हो रहे सलूक को ज्यादा बेहतर ढंग से बयान कर सकते है लेकिन क्या किसी ने सोचा है की 21वी सदी के मेट्रोपोलिटिन कहने जाने वाले हमारे शहरों में एसे वाक्यात रोज़ होते है एक सच्चा किस्सा बयान कर रहा हू जो हमारी धर्मनिरपेक्ष सोच पर से पर्दा उठाते है.. मेरे एक जानकार मुस्लिम दोस्त है ....एक रोज़ हमसे कहने लगे की यार अपनी कालोनी में हमारे लिए किराये का मकान देखों .....पांच वक्त के नमाजी आदमी है... और हैरत की बात है की पूरी तरह से शाकाहारी है... जबकि मै मांस मच्छी सब खाता हूं ...एक दफा मैने उनसे पूछा की आप एक मजहब में तो इस पर रोक नही है तो फिर आप ये सब क्यों नही खाते उन्होने कहा की मजहब का बात नही है बस यूंही नही खाता और मेरे घर में भी कोई नही खाता...खैर मैने उनके लिए मकान खोजना शुरु कर दिया पेशे से एक संस्थान में नेटवर्क एडमिनीस्ट्रेटर है...आमदनी ठीक ठाक .....कुछ कोशिशों के बाद एक खाली मकान निगाह में आया दरअसल जिनके यहां पहले मै किराये पर रहता था उन्ही का मकान खाली था मेरे संबध पुराने मकान मालिक से से अच्छे थे सो फोन पर बात होने के बाद उन्होने कहा की यार जो भी है उनहे आज शाम को मकान दिखाने ले आओ मै उन्हे मकान दिखाने ले गया शाम को चाय पर मकान मालिक से मुलाताकात हुई मेरे दोस्त मेरे साथ थे बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ जब परिचय हुआ तो मेरे पुराने मकान मालिक के चेहरे के हावभाव बदल गये यकिन मानिये मैने मकानमालिक के चेहरे के एक एक भाव को उस वक्त पढ़ा.. शायद मेरे दोस्त ने भी पढा होगा.. अचानक उन्होने कह दिया की अभी मकान में कुछ काम होना बाकी है सो अभी वो मकान नही दे पायेंगे... मुझे और मेरे दोस्त को समझते देर नही लगी की की अचानक उनके रवैये में इस बदलाव की वजह क्या थी.... उनके यहां से बाहर आने के बाद मैं अपने दोस्त से नजरें नही मिला पाया मेरे दोस्त ने कहा कोई बात नही हो जात है.... तुम मेरे लिए कोई और मकान देख लो सभी लोग एक से नही होते ये सुनकर मै बड़ी खामोशी से उन से विदा लेकर चल पड़ा..... शाम को यही सोच कर मैनें कुछ और घर ढूढने की कोशिश की लेकिन इस बार मैने सबको ये पहले ही बता दिया की मेरा देस्त मुस्लिम है यकिन मानिये सब ने न कह दी उसी रात मुझे मेरे पुराने मकान मालिक का फोन आया मुझे लगा का शायद वो अपने किए के लिए शर्मिंदा होंगे लेकिन एसा कुछ नही था उन्होने कहा की ''तुम्हे हमारी सेफ्टी का कुछ ख्याल है नही यार तुम किसी को भी ले आये..... एक मुस्लमान के ला रहे हो ये मुझे पहले बताना था'' ....इस के बाद मै पूरी रात ये ही सोचता रहा की आखिर इसके पीछे बजह क्या थी

5 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

मैंने नवभारत में ये स्टोरी पढ़ी थी। इसमें नया क्या है। कोई हल या कोई सवाल तो उठाए ही नहीं आपने। क्या आपने न्यूज़ पोर्टल चला रखआ है ये

बात तो सही कह रहे हों लेकिन भारत जैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देश में लोग कितने धार्मिक कट्टर है इसका पता अक्सर चल ही जाता है

Akbar Khan Rana said...

अरे भाई, इसमें हैरत की कोई बात नही है, क्योंकि सब जानते हैं कि कुछ मछलियों ने इस बहुत बड़े तालाब को गन्दा कर रखा है. खुदा सबको सही और सच्चा रास्ता दिखाए! आमीन !
कृपया http://www.thenetpress.com/ पर भी विज़िट कीजिये.

Samra said...

Are your relations normal with that hindu friend of yours?

shahi likha hai. nice

 
 
 

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