तेल के दामों में फिर आग लग गयी है अभी दो ही दिन बीते थे देश मे तेल के दाम बड़े की अंतरराष्ट्रिया बाज़ार में तेल की कीमते एक बार फिर १३९ डॉलर
प्रति बेरेल के पर जा पहुँची हैं पर हमारे देश मे तेल के दाम बदते ही तेल पर राजनीति का खेल शुरू हो गया है कहीं अशोक गोयल पुरानी दिल्ली मे घोड़े की सवारी
कर रहे है तो कही वनकय्या नायडू बैल को हलकान किए जा रहे है मध्य परदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान साइकल से आफ़िस जा रहे है लेकिन लगता नही
है की राजनीति के स्टंट से ज़्यादा नेताओं को सच में आम जनता की कोई फिकर है लेकिन जिस शहर में मे रहता हू वाहा भाजपा की महिला प्रकोष्ठत की
कुछ महिलाओं ने सिलेंडर की अर्थ निकाली और उसकी शव यात्रा को कंधा दिया अब हिंदू धर्म में तो महिलाओं को कंधा देने की इजाज़त नही है लेकिन इन महिलाओं
ने फिर भी दिया खैर छोड़िए अब बात करते है असली जिंदगी की कुसुम की कुछ साल पहले ही शादी हुई थी पति एक प्राइवेट फार्म में पाँच हज़ार ही नौकरी करते है कुछ दिन पहले किष्तो
पर एक मोटोरसाइकेल ली थी लेकिन अब पेट्रोल के बड़े दामों ने उनके लिया दिक्क़ते खड़ी कर दी है रसोई गॅस के बड़े दामों ने कुसुम के माथे पर चिंता की लकीरें खिच दी है पर वो कोई विरोध नई
जाता सकते अड्जस्ट करना होगा क्योंकि देश तर्रकी कर रहा है उन्हे भी ये दिखाना होगा की वो भी तर्रकी कर रहे है इन बड़ी कीमतों की झेल सकते है
फिर भले ही इस तेल की चक्कर में उनका खुद का तेल क्यों ना निकल जाए देश तर्रकी कर रहा है महनगाई दर ८ फीसदी ज़्यादा है तो क्या हुआ
विकास दर भी तो इतनी है फिर बेशक इन आँकड़ो के खेल मे करोड़ो कुसुम और उनके पति पिसते रहे तो पीसने दीजिए किसी को क्या फरक पढ़ता है
मेरे बारे में...
- राहुल गोयल
- पेशे से पत्रकार हूं ...करियर अभी शुरु किया है सो अभी तो इस विचित्र दुनिया को समझने की कोशिश कर रहा हूं.....
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तेल में लगी आग:आग पर सिकती राजनीती की रोटियां
Friday, June 6, 2008प्रस्तुतकर्ता राहुल गोयल पर 11:31 PM 3 टिप्पणियाँ
पर्यावरण दिवस........पिघलती धरती
Wednesday, June 4, 2008
पल पल धरती पिघल रही है बारिश के दिनो मे धरती सुखी रहती है बेमोसम बरसात हो रही है गर्मी मे ठंड पड़ रही है ठंड अब पहले जैसी नही रही
कही मौसम मे आए ये परिवर्तन किसी बड़ी तबाही की ओर इशारा तो नही कर रहे धरती को बचाने की लाखों कोशिॉषे की जेया रही है लेकिन धारा का रूप हम इस कदर बिगाड़ चुके की सारी कोशिशे नाकाफ़ी लग रही है विकास के नाम पर लाखों पेड़ हर साल काट दिए जाते
कंक्रीट के जंगलों मे रहने के लिए सुविधयुक्त घर तो मिल रहे है लेकिन साँस लेने के लिए प्राण वायु हर पल कम होती जेया रही है
नादिया नलो मे तब्दील हो गयी है कुछ का तो नामोनिशान भी मिट चुका है
हर ओर धुआँ गंदगी ही दिखाई पद रही है गॉधुलि ढूंदेने निकलो तो सिर्फ़ धूल दिखाई देती है लगता है हमफरी धरती को किसी
की नज़र लग गयी है शायद हमारी खुद की..........................हो सके तो इसे बचालो
प्रस्तुतकर्ता राहुल गोयल पर 11:58 PM 5 टिप्पणियाँ
कहाँ रेल रुकेगी कहा पेड गीरेंगे इन्हे सब पता है
ये नये जमाने के पत्रकार है इन्हे सब मालूम है की गुज्जर कहा पैड गिराएँगे कहा रेल रोकेंगे .इनके ओफिसो मे ये तय
होता है की के अच्छे विज़ुअल किस तरह का हंगामा करने के बाद मिलेंगे इन्हे आम लोगो की परवाह नही है इन्हे अपने विज़ुअल्स से मतलब है
ये प्रदर्शनकारिओ को पाठ पड़ते है की सुबहा के वक़्त फलाँ ट्रेन रोकोगे तो यात्री ज़्यादा परेशन होंगे किस सड़क पर पेड़ गिरना विज़ुअल्स के लिहाज से अछा रहेगा
प्रदर्शनकारी भी मेहनत जाया नही जाने देना चाहते वो भी चाहते है की टीवी पर उनका चेहरा ज़्यादा से ज़्यादा दिखें सो वो भी ऐसा करते है ये मीडीया का
कौनसा रूप है ?जहाँ मीडीया लोगो की परेशानिया सरकार तक पहुँचने की बजे उनकी दिक्क़ते बड़ाने का काम कर रहा है
क्या ऐसा करने वाले पत्रकारिता को दीमक की तरह चट् नही कर रहे है
या क्रिएटीविटी के नाम पर ऐसा करने की छूट दी जा सकती है ?
प्रस्तुतकर्ता राहुल गोयल पर 11:29 PM 0 टिप्पणियाँ