तेल में लगी आग:आग पर सिकती राजनीती की रोटियां

Friday, June 6, 2008


तेल के दामों में फिर आग लग गयी है अभी दो ही दिन बीते थे देश मे तेल के दाम बड़े की अंतरराष्ट्रिया बाज़ार में तेल की कीमते एक बार फिर १३९ डॉलर
प्रति बेरेल के पर जा पहुँची हैं पर हमारे देश मे तेल के दाम बदते ही तेल पर राजनीति का खेल शुरू हो गया है कहीं अशोक गोयल पुरानी दिल्ली मे घोड़े की सवारी
कर रहे है तो कही वनकय्या नायडू बैल को हलकान किए जा रहे है मध्य परदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान साइकल से आफ़िस जा रहे है लेकिन लगता नही
है की राजनीति के स्टंट से ज़्यादा नेताओं को सच में आम जनता की कोई फिकर है लेकिन जिस शहर में मे रहता हू वाहा भाजपा की महिला प्रकोष्ठत की
कुछ महिलाओं ने सिलेंडर की अर्थ निकाली और उसकी शव यात्रा को कंधा दिया अब हिंदू धर्म में तो महिलाओं को कंधा देने की इजाज़त नही है लेकिन इन महिलाओं
ने फिर भी दिया खैर छोड़िए अब बात करते है असली जिंदगी की कुसुम की कुछ साल पहले ही शादी हुई थी पति एक प्राइवेट फार्म में पाँच हज़ार ही नौकरी करते है कुछ दिन पहले किष्तो
पर एक मोटोरसाइकेल ली थी लेकिन अब पेट्रोल के बड़े दामों ने उनके लिया दिक्क़ते खड़ी कर दी है रसोई गॅस के बड़े दामों ने कुसुम के माथे पर चिंता की लकीरें खिच दी है पर वो कोई विरोध नई
जाता सकते अड्जस्ट करना होगा क्योंकि देश तर्रकी कर रहा है उन्हे भी ये दिखाना होगा की वो भी तर्रकी कर रहे है इन बड़ी कीमतों की झेल सकते है
फिर भले ही इस तेल की चक्कर में उनका खुद का तेल क्यों ना निकल जाए देश तर्रकी कर रहा है महनगाई दर ८ फीसदी ज़्यादा है तो क्या हुआ
विकास दर भी तो इतनी है फिर बेशक इन आँकड़ो के खेल मे करोड़ो कुसुम और उनके पति पिसते रहे तो पीसने दीजिए किसी को क्या फरक पढ़ता है

पर्यावरण दिवस........पिघलती धरती

Wednesday, June 4, 2008


पल पल धरती पिघल रही है बारिश के दिनो मे धरती सुखी रहती है बेमोसम बरसात हो रही है गर्मी मे ठंड पड़ रही है ठंड अब पहले जैसी नही रही
कही मौसम मे आए ये परिवर्तन किसी बड़ी तबाही की ओर इशारा तो नही कर रहे धरती को बचाने की लाखों कोशिॉषे की जेया रही है लेकिन धारा का रूप हम इस कदर बिगाड़ चुके की सारी कोशिशे नाकाफ़ी लग रही है विकास के नाम पर लाखों पेड़ हर साल काट दिए जाते
कंक्रीट के जंगलों मे रहने के लिए सुविधयुक्त घर तो मिल रहे है लेकिन साँस लेने के लिए प्राण वायु हर पल कम होती जेया रही है
नादिया नलो मे तब्दील हो गयी है कुछ का तो नामोनिशान भी मिट चुका है
हर ओर धुआँ गंदगी ही दिखाई पद रही है गॉधुलि ढूंदेने निकलो तो सिर्फ़ धूल दिखाई देती है लगता है हमफरी धरती को किसी
की नज़र लग गयी है शायद हमारी खुद की..........................हो सके तो इसे बचालो

कहाँ रेल रुकेगी कहा पेड गीरेंगे इन्हे सब पता है


ये नये जमाने के पत्रकार है इन्हे सब मालूम है की गुज्जर कहा पैड गिराएँगे कहा रेल रोकेंगे .इनके ओफिसो मे ये तय
होता है की के अच्छे विज़ुअल किस तरह का हंगामा करने के बाद मिलेंगे इन्हे आम लोगो की परवाह नही है इन्हे अपने विज़ुअल्स से मतलब है
ये प्रदर्शनकारिओ को पाठ पड़ते है की सुबहा के वक़्त फलाँ ट्रेन रोकोगे तो यात्री ज़्यादा परेशन होंगे किस सड़क पर पेड़ गिरना विज़ुअल्स के लिहाज से अछा रहेगा
प्रदर्शनकारी भी मेहनत जाया नही जाने देना चाहते वो भी चाहते है की टीवी पर उनका चेहरा ज़्यादा से ज़्यादा दिखें सो वो भी ऐसा करते है ये मीडीया का
कौनसा रूप है ?जहाँ मीडीया लोगो की परेशानिया सरकार तक पहुँचने की बजे उनकी दिक्क़ते बड़ाने का काम कर रहा है
क्या ऐसा करने वाले पत्रकारिता को दीमक की तरह चट् नही कर रहे है
या क्रिएटीविटी के नाम पर ऐसा करने की छूट दी जा सकती है ?

 
 
 

games

For More Games Visit www.zapak.com

more games

For More Games Visit www.zapak.com