जेब कतरो से सावधान

Thursday, January 31, 2008

रूट नम्बर १६५ कि बस से घर लौट रह था तभी किसी ने मेरी जेब से मेरा पर्स गायब कर दिया समय रहते मुझे पता चल गया तो में उसके पीछे भगा ,भागते भागते मेरी एक मोटर साईकिल से टक्कर भी हो गयी और चोट भी आई पर फिर भी मैं उसके पीछे भगा और उसे पकड़ने मैं कामयाब रहा, मैं पत्रकारिता का विध्यारती ह इसलिए मेरी जेब में ज्यादा पैसे तो नही थे पर कुछ जरुरी सामान था मसलन मेरा आई कार्ड फी सिलिप आदि जिनकी कीमत एक विद्यारती के लीए पैसे से ज्यादा होती है मेने उसे पकड़ लिया मैं अपनी सफलता पर खुश था मैं उस चोर को एक पी सी आर कि मदद से थाने ले आया वंहा एक पुलिस कर्मी को सारा वाकया बताया सब कुछ सुनने के बाद वो मुझे बाहर ले गया औए दो रस्ते सुझाने लगा शायद सभी सरकारी विभागों में आम लोगो को दो रस्ते बताये जाते हे उसने मुझे पहला रास्ता बताया कि मैं चाहू तो मामले को रफा दफा कर दु, और फिर उसने मुझे दूसरा रास्ता बताया जो सुनने में तो अछा था पर हकीकत में काफी भयानक उसने कहा कि मैं चहु तो मुकद्दमा कायम करा सकता हु पर सुनवाई में शायद आठ दस साल लग जाये और तब तक शायद मुझे कचहरी के चक्कर काटने पड़े मेरा अन्दर का जो पत्रकार कुछ देर पहले जगा हुआ था अब वो सो चूका था औए उसकी जगह आम आदमी ने ले ली थी मैं घबरा गया और मेने पहला वाला रास्ता चुन लिया अब मैं आम आदमी था और आम आदमी को दर्द भी होता है मेने अपने पैर कि तरफ देखा तो वो सूज चूका था मेरी एक सफलता ने मुझे सारा दर्द भुलवा दिया था और एक हकीकत ने साड़ी टीस वापस लौटा दी अब आम आदमी घर लौट रह था दर्द में करहाता हुआ

 
 
 

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