आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे (नस्लीय) हमलों को लेकर इन दिनों काफी शोर सुनाई दे रहा है ...रंग के आधार पर वहां भारतीयों को शिकार बनाया जा रहा है ये वाकई शर्मनाक है लेकिन हमारे देश में आये दिन इससे भी कुछ शर्मनाक घटता है पर उसका विरोध कहीं सुनाइ नही देता क्योंकि फोटोजेनिक चेहरों में दिलचस्पी ऱखने वाले मीडिया को भी उसमें टीआरपी मिलती नही दिखती...इसलिए वो भी इसे दरकिनार कर देता है..
ऐ. चिंकी चल कार में बैठ जा ..वो देख हब्शी जा रहा है ...अरे अब तो कालू भी यहां पढ़ने आने लगे...ये शब्द आपकों दिल्ली विश्वविघालय में आये दिन सुनाइ देंगे..... अपनें ही देश के उत्तर पूर्व कोने से आने वाले लोगों को हमारे ही देश मे परगृहियों की तरह ट्रीट किया जाता है महज़ उनकी शीरिरीक बवावट, पहनावे और खान पान के तरीकों के आधार पर.
मेरे कई एसे दोस्त है जो पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और बाद मे आगे की पढाई करने वो आस्ट्रेलिया या दूसरे देशों मे चले गये वो जब यहां थे तो उनहोने देश है अंदर ही होने वाले इस रंगभेद के खिलाफ कभी आवाज़ नही उठाई बल्कि वो खुद इसका हिस्सा बने रहे और आज देश के बाहर रंगभेद का शिकार होने पर उन्हे चोट पहुंच रही है... ये ठीक है की वहां रंग भेद के साथ साथ भारतीयों पर जानलेवा हमले भी किये जा रहे है जो शर्मनाक है और इसका विरोध होना चाहिये लेकिन लेकिन देश के अंदर जब हम अपने ही लोगों को नीचा दिखाने से बाज़ नही आते तों बाहर वालों को सही होने की सीख हम किस मुह से दे ...दरअसल जैसे जैसे हमें अपने सभ्य होने का गुमान होता जा रहा है वैसे वैसे हम सच्चाई से मुह मोड़ते जा रहे है ...जो तबका इस पुरे घटनाक्रंम का शिकार हो रहा है वो सभ्रात और पढा लिखा तबका है लेकिन अपने ही देश में होने पर ये तबका भी कमोबेश वैसे ही पेश आता है जैसा जि़क्र मैने उपर किया है ..आखिर हम भी तो कहीं न कहीं दोहरी मानसिकता के शिकार है ..
हम आज भी दलितों को आज भी अछूत समझते है...क्यों ?
उत्तर पूर्व के लोगों को हम अपना हिस्सा ही नही समझते क्यों ?
बस में अगर सिर पर कोई गोल टोपी लगाये लंबी दाढी वाला शख्स सवार हो जायें तो हम उसे शक़ की नज़र से देखने लगते है..क्यों ?
किसी अफ्रिकी मूल के शख्स को देखते ही कालू या हब्शी कहते हुए हमे ज़रा भी देर नही लगती क्यों ?
मुम्बई में किसी को भईया कह देने पर वो भड़क जाता है क्यों ?
अखबारों के मेटरिमोनियल में हमेशा गोरी लंबी और सुंदर दिखने वाली वधु के ही विज्ञापन देते है क्यों ?
किसी के भोजन के तौर तरीकों के चलते गै़रों जैसा बर्ताव करने है क्यों ?
अंतर्राजातीय विवाह आज भी हमारे यहां चौकैने वाली घटना होती है क्यों ?
ये वो चंद सवाल है जिनका जवाब ढूंढना बेहद जरुरी है ...आस्ट्रेलिया की घटना ने हमे आत्मविषलेशण का मौका दिया है और इस पर हमे गंभीरता से सोचना चाहिये...जो आस्ट्रेलिया में घट रहा है वो बिल्कुल भी बर्दाशत नही किया जाना चाहिये लेकिन देश के अंदर ही अपनों को पराया होने का अहसास करना कहीं ज्यादा शर्मनाक है और इसके लिए कोशिशे कही बड़े पैमाने पर किये जाने कि जरुरत है.....कबीर ने कहा है
बूरा जो देखन मै चला ,बुरा न मिल्या कोई जो दिल देखन आपना मुझसे बुरा न कोई