हिंदुस्तानी हॉकी के हालात पर हया आती है

Sunday, January 10, 2010


जब काफी छोटा था तो पूर्व हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्ले को ये कहते हुए टीवी पर सुना था की हॉकी ने 'हमें नाम दिया शोहरत दी लेकिन दौलत नहीं दी' तब इसका मतलब समझ नहीं आया क्योकिं तब न हॉकी के बारे में कुछ मालोमात थी न इसके खिलाड़ियों के बारे में बाद में इस खेल में कुछ दिलचस्पी जागी तो स्कूल लेवल पर हॉकी खेल भी ली.. हॉकी के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव उस वक्त से समझ में आने लगा था क्योंकि ये खेल सिखाने वाला न तो कोई कोच स्कूल में मौजूद था ना ही इससे जुड़े अच्छे साजो सामान ही उपलब्ध कराए जाते थे ..अलबत्ता क्रिकेट खेलने वालें बच्चों के साथ एसा नही था उन्हे बाकायदा इसकी कायदे से ट्रेनिंग मिलती थी साथ ही खेल सिखाने वाले अध्यापकों और कोच का प्रोत्साहन भी भलि भांति मिलता रहता था ...खैर स्कूल के दिन लदे और हॉकी खेलने की इच्छा मन में ही रह गई..कॉलेज पहुचे तो एसा लगता था की मानों ये खेल हमारे देस में तो खेला ही नही जाता शायद किसी परग्रह का खेल है वहां भी क्रिकेट का ही बोलबाला निकला ....लेकिन तब लगता था की शायद बाकी जगह एसा हाल नही होता होगा वहां लोगों को ये खेल खेलने का मौका मिलता होगा..मेरे पसंददीदा खेल को न खेल पाने का गम मुझे उस वक्त इतना नही हुआ जितना आज हॉकी के हश्र को देखकर होता है ..आज की बात करें तो हिंदुस्तानी हॉकी के हालात लगातार बद से बदतर होते जा रहे है ..तनख्वाह न मिलने से नाराज़ खिलाड़ी प्रेक्टिस छोड़ कर बैठे है.. फिल्मी सितारें तक हाकी के हाल पर अफसोस जता चुके हैं लेकिन हॉकी संघ के हाकिमों के कान पर जूं तक रेंगती दिखाई नही दे रही है..नाराज खिलाड़ियों को संघ ने दिल्ली में हुई बैठक के दौरान लॉलिपॉप थमाने की कोशिश जरूर की लेकिन संघ के रवैये से आजीज आ चुके खिलाड़ियों ने संघ के साथ समझौते से इंकार कर दिया..अलबत्ता इससे हॉकी फेडरेशन पर कोई खास फर्क पड़ता दिखाई नही दे रहा है..और हॉकी संघ के पास देने के लिए तर्कों की कमी नही है उसके मुताबिक स्पानसर की कमी के चलते वो भी मजबूर है लेकिन जो सवाल सुरसा की तरह मुंह बाय खड़ा है वो ये की क्या एसे हताश हॉकी खिलाडियों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जानी चाहिए .. क्या हिंदुस्तानी हॉकी के इस हाल पर हम सभी को शर्म नही आनी चाहिए..और आखिरी सवाल की क्या हॉकी के बाद.. क्रिकेट से इतर.. दूसरे खेलों का हश्र भी यही होगा..

एक मुसल्मान को ला रहे हो ये मुझे पहले बताना था....are we secular?

Thursday, July 30, 2009


फिल्म अभिनेता इमरान हाशमी ने मुम्बई की एक हाउसिंग सोसाइटी पर गंभीर आरोप लगाया है और कहा है की उन्हे उस सोसायटी में इस लिए घर नही मिल रहा है क्योकि वो एक मुस्लि है क्या इमरान के आरोपों में सच्चाई है?....ये पहली बार नही है जब फिल्म जगत की किसी हस्ती ने एसा आरोप लगाया है इससे पहले शबाना आज़मी सैफ अली खान भी एसे आरोप लगा चुके आरोप गंभीर है ...इस बात से तो सभी वाकिफ हैं की जुहू और बांद्रा में मुस्लिम कलाकारों को घर मिलने में हमेशा दिक्क्त इसलिए इस पर बहस जरुरी है ये लोग फिल्मी हस्तिया अपनी बात या अपने साथ हो रहे सलूक को ज्यादा बेहतर ढंग से बयान कर सकते है लेकिन क्या किसी ने सोचा है की 21वी सदी के मेट्रोपोलिटिन कहने जाने वाले हमारे शहरों में एसे वाक्यात रोज़ होते है एक सच्चा किस्सा बयान कर रहा हू जो हमारी धर्मनिरपेक्ष सोच पर से पर्दा उठाते है.. मेरे एक जानकार मुस्लिम दोस्त है ....एक रोज़ हमसे कहने लगे की यार अपनी कालोनी में हमारे लिए किराये का मकान देखों .....पांच वक्त के नमाजी आदमी है... और हैरत की बात है की पूरी तरह से शाकाहारी है... जबकि मै मांस मच्छी सब खाता हूं ...एक दफा मैने उनसे पूछा की आप एक मजहब में तो इस पर रोक नही है तो फिर आप ये सब क्यों नही खाते उन्होने कहा की मजहब का बात नही है बस यूंही नही खाता और मेरे घर में भी कोई नही खाता...खैर मैने उनके लिए मकान खोजना शुरु कर दिया पेशे से एक संस्थान में नेटवर्क एडमिनीस्ट्रेटर है...आमदनी ठीक ठाक .....कुछ कोशिशों के बाद एक खाली मकान निगाह में आया दरअसल जिनके यहां पहले मै किराये पर रहता था उन्ही का मकान खाली था मेरे संबध पुराने मकान मालिक से से अच्छे थे सो फोन पर बात होने के बाद उन्होने कहा की यार जो भी है उनहे आज शाम को मकान दिखाने ले आओ मै उन्हे मकान दिखाने ले गया शाम को चाय पर मकान मालिक से मुलाताकात हुई मेरे दोस्त मेरे साथ थे बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ जब परिचय हुआ तो मेरे पुराने मकान मालिक के चेहरे के हावभाव बदल गये यकिन मानिये मैने मकानमालिक के चेहरे के एक एक भाव को उस वक्त पढ़ा.. शायद मेरे दोस्त ने भी पढा होगा.. अचानक उन्होने कह दिया की अभी मकान में कुछ काम होना बाकी है सो अभी वो मकान नही दे पायेंगे... मुझे और मेरे दोस्त को समझते देर नही लगी की की अचानक उनके रवैये में इस बदलाव की वजह क्या थी.... उनके यहां से बाहर आने के बाद मैं अपने दोस्त से नजरें नही मिला पाया मेरे दोस्त ने कहा कोई बात नही हो जात है.... तुम मेरे लिए कोई और मकान देख लो सभी लोग एक से नही होते ये सुनकर मै बड़ी खामोशी से उन से विदा लेकर चल पड़ा..... शाम को यही सोच कर मैनें कुछ और घर ढूढने की कोशिश की लेकिन इस बार मैने सबको ये पहले ही बता दिया की मेरा देस्त मुस्लिम है यकिन मानिये सब ने न कह दी उसी रात मुझे मेरे पुराने मकान मालिक का फोन आया मुझे लगा का शायद वो अपने किए के लिए शर्मिंदा होंगे लेकिन एसा कुछ नही था उन्होने कहा की ''तुम्हे हमारी सेफ्टी का कुछ ख्याल है नही यार तुम किसी को भी ले आये..... एक मुस्लमान के ला रहे हो ये मुझे पहले बताना था'' ....इस के बाद मै पूरी रात ये ही सोचता रहा की आखिर इसके पीछे बजह क्या थी

 
 
 

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