जागो रे.........

Wednesday, April 29, 2009



आज कल कुछ लिखने का वक्त नही मिल रहा है जब वक्त मिलता है कुछ करने का मन नही रहता बेमन से लिखने का कुछ फायदा नही है यही सोचकर खुद को रोके हुए हूं लेकिन मैं आजकल उलझन में हूं ...इस उलझन के चलते ही मै ये पोस्ट लिख रहा हूं कुछ रोज़ पहले मैने एक पोस्ट लिखी थी की मै वोट क्यो दूं ...लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है इसमे शरीक होना चाहता हं लेकिन मुझे वजह नही मिल रही .... अभी एक दो दिन पहने एक शख्स से मिला मेरे क़रीबी है हम कार से किसी समारोह मे शामिल होने जा रहे थे तभी रेडियों पर लोगों को वो़ट डालने की अपील वाले विज्ञापन आने लगे ....विज्ञापन सुनकर वे शख्स झुंझला गये कहने लगे वोट डालों वोट डालों एक वोटर आइडी कार्ड बनवाने मे इतने पापड़ बेलने पड़ते है की कोइ नौकरीपेशा आदमी बनवाने की सोच भी नही सकता एक तो ढिला ढाला सरकारी रवैया उस पर अव्यवसथाएं ...फिर वो कहने लगे की अगर ये काम किसी प्राइवेट कम्पनी के सौंप दिया जायें तो शायद वे ये काम बेहतर ढंग से कर सकें ....मुझे उनकी ये बात कुछ हद तक सही लगी ...फिर मुझे खुद के साथ बीता वाक्या याद आया टीवी के एक विज्ञापन से प्रभावित होकर मैने खुद का ऑन लाइन वोटर रजिस्ट्रेशन कराने का नाकाम कोशिश की थी मुझे एक फार्म ई मेल के ज़रिये भेज दिया गया था और उसे भरकर आगे की कार्यवाही करने के लिए कहा गया था वो लेकर जब मै बि एल ओ के पास पहुंचा तो उसे एसा किसी चीज़ की जानकारी ही नही थी ...पेशे से पत्रकार हुं इसलिए मेरे पास समय अक्सर कम होता है लेकिन वहां करीब एक घंटे तक मुझे माथापच्चची करनी पड़ी.. उसके बाद मुझे मेरा नाम लिस्ट मे देखने के लिए कहा गया जब मै लिस्ट मांगने संबधित कर्मचारी के पास गया तो उसने मुझसे कहा की मेरे इलाके के मतदाताओं की लिस्ट चोरी हो गइ है दुसरी लिस्ट तीन दिन बाद आयेगी...मेरे साथ एक दुसरे सज्जन भी थे उनके साथ भी कमोबेश यही सथ्ति थी ये जानकर वो भी अपना मन मसोस कर रह गये फिर उन्होने एक भद्दी सा गाली दी और बाहर आ गये... उसी ऑफिस में क़रीब तीन दर्जन लोग अपना नाम उस लिस्ट मे खोज रहे थे और उनमे से कइ तो अनपड़ थे वो दुसरों का मदद लेना चाह रहे थे लेकिन वो खुद अपना नाम उन हज़ारों लोगों मै नही खोज पा रहे थे सो दुसरों का मदद क्या करते .....कुछ बी एल ओ और अधिकारी बिरयानी खा रहे थे कुछ कर्मचारी सिगरोट पी रहे थे कुछ कर्मचारी लोगों का मदद कर रहे थे...हम शादी मे पहुंच चुके थे.. लोग खाने का मजा़ ले रहे थे हमने भी खाना खाया वहां चुनाव लड़ रहे एक नेता के नुमाइंदे मौजुद थे..वो हम से उन्हे ही वोट डालने की अपील करने लगे फिर वहां जात पात के समीकरण समझाये जाने लगे थोड़ी देर बाद हम घर लौट आये इतने सब काम में दो ही घंटे लगे................

1 टिप्पणियाँ:

Aadarsh Rathore said...

सहा कहा
वो विज्ञापन भी मात्र चाय का है

 
 
 

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