खुद से ही हर सवाल पूछता हूं मै...

Monday, April 6, 2009

आज कल खुद से ही जूझता हूं मै..
खुद से ही हर सवाल पूछता हूं मै...
कुछ पाने के लिए कुछ खो रहा हूं मै..
या कुछ खोने के लिए के लिए पा रहा हूं मै...
समझ नही आता की कहां जा रहा हूं मै...
क्या अपने से किया वादा निभा रहा हू मै..
या नए वादों के वास्ते राह बना रहा हूं मै...
बोल है बिखरे बिखरे से
पर हर पल नया गीत गा रहा हूं मै...
हर चाहत का कत्ल करता हूं मै
लेकिन खुद को कातिल कहने से डरता हूं मै
लोगों को सामने ज़िंदादिल रहता हूं बरबस ही
पर तनहाई में आजकल मरता हूं मै
आज कल खुद से ही जूझता हूं मै..
खुद से ही हर सवाल पूछता हूं मै...

1 टिप्पणियाँ:

Aadarsh Rathore said...

भाई बेहत उम्दा रचना
हर किसी के मनोभावों को चित्रित करती है। कम से कम मेरे मनोभाव तो ऐसी बही हैं इन दिनों....

 
 
 

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