कहाँ रेल रुकेगी कहा पेड गीरेंगे इन्हे सब पता है

Wednesday, June 4, 2008


ये नये जमाने के पत्रकार है इन्हे सब मालूम है की गुज्जर कहा पैड गिराएँगे कहा रेल रोकेंगे .इनके ओफिसो मे ये तय
होता है की के अच्छे विज़ुअल किस तरह का हंगामा करने के बाद मिलेंगे इन्हे आम लोगो की परवाह नही है इन्हे अपने विज़ुअल्स से मतलब है
ये प्रदर्शनकारिओ को पाठ पड़ते है की सुबहा के वक़्त फलाँ ट्रेन रोकोगे तो यात्री ज़्यादा परेशन होंगे किस सड़क पर पेड़ गिरना विज़ुअल्स के लिहाज से अछा रहेगा
प्रदर्शनकारी भी मेहनत जाया नही जाने देना चाहते वो भी चाहते है की टीवी पर उनका चेहरा ज़्यादा से ज़्यादा दिखें सो वो भी ऐसा करते है ये मीडीया का
कौनसा रूप है ?जहाँ मीडीया लोगो की परेशानिया सरकार तक पहुँचने की बजे उनकी दिक्क़ते बड़ाने का काम कर रहा है
क्या ऐसा करने वाले पत्रकारिता को दीमक की तरह चट् नही कर रहे है
या क्रिएटीविटी के नाम पर ऐसा करने की छूट दी जा सकती है ?

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