मीडिया का है ये तमाशा.. जिसका पैसा उसकी भाषा

Monday, June 15, 2009


आज भारत में लोगों का मीडिया पर विश्सास बढा है..लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इस पर खुश हो सकता है अपनी पीठ थपथपा सकता है की लोग आज नोताओं की बात भले ही सुने या न सुने लेकिन मीडिया की हर बात पर आम आदमी गौ़र फ़रमाता है ..आम लोग ये समझते है की कोइ और उनकी बात आगे रखे या न रखे लेकिन मीडिया उनकी सही नुमाइंदगी जरुर करेगा लेकिन ये लोक तंत्र का चौथा स्तंभ अब अपने दम पर नही बल्कि एसे अलग अलग विचारधाराओं वाली बड़ी बड़ी फंडिग एजेंसियों के बूते खड़ा है. जो पैसा लगाये मीडिया उसकी जु़बान बोलने लगता है ऐसे में हम ये कैसे कह सकते है की मीडिया आम आदमी या आम भारतीय की बात आगे रखता है..पिछले दिनों मुझे एक मेल प्राप्त हुई जिसमें भारतीय मीडिया किस तरह की फंडिग के सहारे काम करता है और मीडिया के अलग अलग मालिकान की वजह से मीडिया की सोच और ख़बरे दिखाने का अंदाज भी कैसे बदल जाता है इस बात को समझाया गया है.... हो सकता है की वो किसी सिरफि़रे की करतूत हो लेकिन जो तथ्य उस मेल के जरिये बताये गये है वो कुछ सोचने को तो मजबूर करते ही है.. ये तथ्य कोई नए नही है लेकिन सवाल ये उठता है की पहले से तय विचारधारा या बाहरी फंडिग के इशारे पर काम करने वाले चैनलों से कोइ ये उम्मीद कैसे कर सकता है की वो समाज के सभी तबको की नूमाइंदगी ईमानदारी से कर सकता है.... कोइ चैनल क्मयूनिस्टों के माउथपीस के तौर पर काम करता है तो किसी मे किसी मे किसी बड़े कांग्रेसी नेता का पैसा लगा है किसी पर संघ का हाथ है तो ज्यादातर तो विदेश और चर्च से आने वाले पैसे के दम पर चलते है वहीं दूर्दशन की ख़बरों में सरकार के रोल को तो सब जानते है ....अब तो एक और ख़तरनाक ट्रेंड सामने आ रहा है .. राजनितिक पार्टियां अपने खुद के चैनल ला रही है कुछ प्रत्यत्तक्ष तौर पर तो कुछ पर्दे के पीछे से दक्षिण भारत में इसकी शुरुआत हम देख ही रहे है करुणानिधि से लेकर जयललिता तक सब इसमे शामिल है... बीजेपी के असर वाली इंडिया टूडे के एनडीटीवी के हाथ मे जाने के बाद उसके ख़बरों का कलेवर और तेवर कैसे बदला है ये आप देख सकते है यही हालत अख़बारों की भी है कुल मिला के पूरा का पूरा मीडिया इसकी गिरफ्त में एसा नही है की ये कोइ आज की बात नही है बरसों से एसा हो रहा है लेकिन इस तरह से हम मीडिया में ऑब्जेक्टिवटी होने का बात कैसे कह सकते हैं? हम ये भ्रम कैसे पाल सकते है की मीडिया जो दिखा रहा है वो बेबाक और इमानदार है? हम ये कैसे सोच सकते है की मीडिया की आवाज़ पूरे भारत की आवाज़ है न की सिर्फ किसी एक खास तबके ,पार्टी या पैसे देने वाले ग्रुप की?... ये ठीक है की कई बार मीडीया ने काफी अच्छा काम किया है और कई एसे लोगों को मीडीया के चलते ही न्याय मिल सका जिन्हे इसकी उम्मीद नही थी... लेकिन पहले से ही टीआरपी के वायरस से ग्रस्त मीडिया की ये स्थिती वाकई चिंता का विषय है...और इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिये ............................................

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